Tuesday, October 2, 2007

मेरे प्रिय कि,एक नजर ....

लोह ख्शय हो रहा धीरे-धीरे॥
समय की नमी मे यू विफ़र॥
जड जड, जर-जर, होक्रर,
झर-झर झड्ता जाये जिस्म भीतर॥
क्यी कर के कर ही रहा हू ॥
कर कर से करके खुद कॊ घायल॥
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ऒशध अब तो वो हि लागे॥
मेरे प्रिय कि,एक नजर ....