Saturday, September 1, 2007

कुछ सूफ़िया अन्दाज मै .......

इक बार मिलण की आस लगी,
तोरे साथ मिलण की आस लगी,
मोरि नॆनन की य़ॆ तृष्णा कैसी,
दिन रात मिलण की प्यास लगी,

तोरे नॆणो का ये नमक हॆ सूखा,
मोरि नैनण मै बरसात लगी,
दिन का सूरज काला लागे,
काली अन्दिय़ारी रात लगी!
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ईक बार ...

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