ये उमस ये अधूरापन,
कुछः रोये खडे से,
कूछ आखे रुआसू,
ना गिरता पानी,
न सम्हले पलको से ही
कुछ याद भी नही,
पर कुछ याद आ रहा,
खिची हुइ मुस्कान
पर हसी का नाम नही
ये बदली सि लगी चहु ओर
श्याम से श्यामल करने निशा,
ये तेरा चरम हे अन्धेरा
ये सीम है सन्नाटे की
ये घुटन का अन्तिम हे प्रहार,
अब तो अरुन का होना है आगमन
तुम ना सह सकोगे उसे
करो प्रस्थान ए रात के दूत..
ले चलो सन्ग ये धुन्ध, ये निराश, ये निश्वास .
मॆ करू आह्वान प्रकाश...
1 comment:
classic...as always..
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